गुदा के बगल से मवाद आना


             गुदा के बगल से मवाद आना


लक्षण–

 फिश्चुला (भगंदर) बीमारी की शुरुआत गुदा और उसके आसपास दर्द और गुदा के बगल में गाँठ (फोड़ा) के साथ शुरू होती है। 1-2 दिन में ही दर्द असहनीय हो जाता है। गुदा के पास का स्थान सख्त हो जाता है और छूने पर दर्द करता है, दर्द इतना तीव्र हो जाता है कि मरीज छींकने-खाँसने में भी डरता है। इसके साथ ही बुखार आना, ठण्ड लगना और मूत्र त्याग में पीड़ा होना जैसे लक्षण भी महसूस किये जाते हैं। अगले दिन दर्द युक्त स्थान नर्म और ● पिलपिला हो जाता है। यदि इस दौरान उपयुक्त चिकित्सा न की जाये तो यहाँ मौजूद गाँठ अपने आप फूट जाती है और मवाद बहने लगता है। ऐसा होते ही दर्द और अन्य लक्षण शांत होने लगते हैं।

पहले तो बहने वाले मवाद की मात्रा अधिक होती है मगर बाद में उसमें कमी आने लगती है। धीरे धीरे घाव जहाँ से मवाद निकलती थी, सूखने लगता है, और कुछ दिनों के पश्चात् या तो पूरी तरह भर जाता है, या एक छोटा-सा छिद्र छोड़ जाता है जिसमें से मवाद, दुर्गन्ध युक्त स्त्राव निकलना जारी रहता है।

मवाद बनने, गांठ उत्पन्न होने और उसके फूटकर बहने का यह क्रम कई बार दोहराया जाता है। प्राय बाहरी छिद्र एक ही होता है, मगर बीमारी पुरानी हो छिद्र की मात्रा एक से ज्यादा भी हो सकती है।

कारण - 

यौन संक्रमण या अप्राकृतिक संबंध, 
एनीमा की या अन्य कोई चोट, गुटका, सुपारी का सेवन, कड़ा पाखाना, कब्ज आदि हो सकता है।

 रोग जाँच - 

एक विशेष किस्म का एक्सरे जिसे फिश्चुलोग्राम कहते हैं, फिश्चुला की सम्पूर्ण रचना का चित्र खींच देता है जिससे फिश्चुला की अंदरूनी स्थिति पता चलती है।

जटिलतायें—

 बार-बार निकलने वाली मवाद, - अंदरूनी वस्त्रों में दाग व गंध की वजह से मरीज का जीना दूभर हो जाता है। इतना ही नहीं बरसों पुराना फिश्चुला अपने भीतर कैंसर को भी जन्म दे सकता है।

प्रारम्भिक उपचार–

 अधिकांश मरीजों में फिश्चुला को दवाओं से पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता। लक्षण जब उग्र हो तो एन्टीबायोटिक औषधियों और दर्दनाशक दवाओं से तकलीफ कम की जा सकती है। इनकी वजह से संक्रमण कम हो, सूजन उतर जाती है और मरीज राहत महसूस करता है। उस स्थान को साफ करना एवं गुनगुने पानी से भरे टब में बैठकर सेंक करना भी दर्द कम करता है।

इलाज-

 फिश्चुला का इलाज अधिकांश मरीजों में अत्याधुनिक रेडियो सर्जरी या शल्य क्रिया द्वारा ही होता है। उपचार इस क्षेत्र के अनुभवी विशेषज्ञ से ही कराना चाहिये अन्यथा शल्य क्रिया के पश्चात् भी बीमारी कभी-कभी ज्यों की त्यों बनी रहती है या पुनः उभर आती है।

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