मेनिया mania (अति उत्साह)
कुछ रोगियों में मस्तिष्क के कुछ रसायन बढ़ जाते हैं तब डिप्रेशन की विपरीत स्थिति पैदा होती है जिसे मेनिया कहते हैं।
मेनिया के मुख्य लक्षण निम्न हैं
इसमें रोगी अत्याधिक प्रसन्न व उत्साही हो जाता है। उनके दिमाग में नई-नई योजनायें बनती रहती हैं और बहुत जल्दी एक बड़ा अमीर बनने का प्रयास करने लगते है। विचारों की तेजी के कारण वह विभिन्न प्रकार के नये काम करना प्रारम्भ कर देता है किन्तु किसी भी काम को ठीक ढंग से सम्पन्न नहीं कर पाते। इनको बहुधा यह भ्रम हो जाता है कि वह बहुत बड़े नेता या प्रभावशाली व्यक्ति हैं और समझाने पर भी इस बात को नहीं मानते है कि वास्तव में ऐसा नहीं है।
जोर-जोर से बातें करने लगते हैं, वे अत्याधिक खर्चे करने लगते हैं। रंग-बिरंगे और नये फैशन के कपड़े पहनना पसंद करने लगते हैं। अत्याधिक और धारा प्रवाह में बोलते हैं जिससे बहुधा इनकी बात भी समझना मुश्किल हो जाता है। यह शेरों-शायरी का भी प्रयोग करने लगते हैं।
उनकी नींद कम हो जाती है, बहुधा रात को एक-दो घंटे ही सोते हैं और जब सुबह दो-तीन बजे उठ जाते हैं तो उसी समय से घर वालों को उठने के लिये उत्साहित करते हैं। ये एक स्थान पर स्थिर नहीं बैठ सकते, हमेशा
चलते-फिरते रहते हैं। सड़क चलते लोगों से भी बातें करने लगते हैं। इनकी इच्छायें बढ़ जाती हैं और बिना सोचे-विचारे किसी से भी गलत व्यवहार कर सकते हैं। यदि इनको किसी भी कार्य करने से रोका जाये तो यह अत्याधिक क्रोधित हो जाते हैं और मार-पीट भी करने लगते हैं। भूख बढ़ जाती है परन्तु बहुधा ये इतनी उत्तेजना में रहते हैं कि इन्हें खाने का समय ही नहीं मिल पाता जिस वजह से यह लोग चिड़चिड़ाते रहते हैं।
मानसिक रोगों की उत्पत्ति के कारण डिप्रेशन रोग अधिकतर वंशानुक्रम के प्रभाव के कारण होता है। यह आवश्यक नहीं है कि रोगी के निकट संबंधियों में कोई इस से पीड़ित हो लेकिन बहुधा इस प्रकार के रोग उनके संबंधियों में मिलते हैं। वंशानुक्रम के कारण इन रोगियों के मस्तिष्क में कुछ विशेष रसायन स्वतः घटते या बढ़ते रहते हैं। जब यह रसायन घटते हैं तो डिप्रेशन हो जाता है। कुछ समय पश्चात् यह रसायन स्वतः सामान्य भी हो जाते हैं। अतः यदि इस रोग की चिकित्सा भी न की जावे तो रोगी स्वयं सामान्य हो जाता है। यदि यह रसायन बढ़ जाते हैं तो मेनिया हो जाता और यह भी कुछ समय पश्चात् स्वतः ठीक हो जाता है। कुछ रोगियों में यह रसायन केवल घटते ही हैं और बढ़ते नहीं हैं। ऐसे में बार-बार डिप्रेशन रोग होता रहता है। मनोचिकित्सक से सलाह जरूरी
मेनिया के रोग वंशानुगत भी हो सकते हैं और स्वतः ठीक भी हो सकते हैं फिर भी निम्न कारणों से मनोचिकित्सक से सलाह लेना ही उचित है क्योंकि मेनिया का रोगी भी रोग होने के समय व्यर्थ के झगड़े फसाद, फिजूल खर्ची इत्यादि के कारण स्वयं को एवं अपने संबंधियों को अत्याधिक नुकसान पहुँचा सकता है। इसलिये इन रोगियों की मनोचिकित्सक से समय पर चिकित्सा कराना या सलाह लेना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
स्किजोफ्रेनिया
इसमें मरीज के सोच विचार, मन और वास्तविक
परिस्थिति को महसूस करने में अन्तर आता है। उन्हें
कानों में आवाजें आती हैं, जिसके फलस्वरूप वे
बुदबुदाते हैं, हँसते हैं या रोते हैं। लोगों पर, पत्नी पर या
पड़ोसी पर शक करना, अपने आप में खोये रहना, घर से
बाहर न निकलना। कुछ मरीज अधिक पूजा पाठ करते हैं। या एकही स्थान पर घंटों खड़े रहते हैं, उन्हें नींद नहीं
आती है तथा खाने-पीने, नहाने-धोने की सुध नहीं
रहती है।
उपचार -
इस रोग का उपचार मनोचिकित्सक की देखरेख में शीघ्र करवाना चाहिये। ऐसे रोगियों के इलाज में जरा भी लापरवाही नहीं होना चाहिये।
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