प्रमुख मानसिक रोग लक्षण एवं उपचार
विश्व में मानसिक रोग तेजी से बढ़ती बीमारी है, यह किसी भी उम्र में, किसी को भी, कभी भी (अन्य शारीरिक रोगों की तरह) हो सकता है। जिस तरह तन की बीमारियाँ होती हैं उसी तरह मन की बीमारियाँ भी होती हैं। मन की बीमारी का इलाज परिवार के सदस्यों की जागरुकता पर निर्भर है क्योंकि जिस मरीज को मन की बीमारी होती है उसे अपनी बीमारी का पता ही नहीं रहता। ऐसे में परिवार की भूमिका अहम हो जाती है। अगर परिवार के सदस्य मरीज को मनोचिकित्सक के पास ले जाने में देर करेंगे तो मर्ज बढ़ता ही जायेगा जिससे अन्य नुकसान जैसे - आत्महत्या, व्यापार में घाटा, नौकरी से छुट्टी, झगड़े आदि का सामना करना पड़ सकता है। मनोरोग प्रेत, बला नहीं है अतः झाड़-फूँक के चक्कर में समय खराब न करें।
DEPRESSION (डिप्रेशन) लम्बी उदासी
सामान्यतया सभी व्यक्ति विछोह अथवा हानि से उदास या दुखी हो जाते हैं जैसे सगे-संबंधी की मृत्यु के पश्चात्, कर्जा, कोई आर्थिक हानि होने पर, नौकरी न मिलने के कारण, चलता व्यापार बंद हो जाना या परीक्षा लगते में असफल हो जाने के कारण, बीमारी, मृत्यु या अन्य में र कोई भय, पारिवारिक वातावरण इत्यादि। परन्तु यह जिस उदासीनता परिस्थिति के अनुसार ही होती है और समय के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। यदि यह | उदासी बहुत समय तक बनी रहे तथा व्यक्ति के कार्यों एवं पारिवारिक जीवन को प्रभावित करने लगे तब इसको डिप्रेशन कहते हैं।
कुछ व्यक्तियों में विटामिंस की कमी या अन्य दूसरे रोग जैसे थायराइड हारमोंस, बढ़ी हुई शुगर, नींद की कमी, दवाई का असर, नशा से भी डिप्रेशन की स्थिति बन सकती हैं परन्तु कभी-कभी मस्तिष्क के कुछ रसायन की कमी भी डिप्रेशन का कारण होती है।
डिप्रेशन रोग के प्रमुख लक्षण
डिप्रेशन में व्यक्ति हमेशा उदास और निराश अनुभव अ करता है। वह अपने भविष्य के बारे में उत्साहहीन हो कु जाता है, हँसना भी भूल जाता है। उसे बार-बार रुलाई नह आने लगती है। कई बार रोगी अपने आपको और अपने जीवन को भार समझने लगता है जिसके फलस्वरूप उसमें आत्महत्या की प्रवृत्ति भी कभी-कभी उत्पन्न हो जाती है। इन्हें किसी से मिलना जुलना पसन्द नहीं रहता, किसी भी काम में मन नहीं लगता या बार-बार गलतियाँ होना और इनकी खाने पीने एवं मनोरंजन की भी इच्छा कम हो जाती है। इस रोग में बहुधा व्यक्ति अपने आपको बिलकुल बेकार, असहाय तथा कभी-कभी अपने को अपराधी भी समझने लगता है। कुछ रोगी तो यहाँ तक निराश हो जाते हैं कि ऐसा सोचने लगते हैं कि जो कुछ भी उनके परिवार में बुरा हो रहा है वह उनके ही कारण है। उन्हें नित्य के छोटे-छोटे काम करना भी भारी लगने लगता है जैसे- नहाना, कपड़े साफ करना या खाना बनाना आदि। उनकी नींद कम हो जाती है। परिस्थिति जन्य डिप्रेशन में रात को देर से नींद आती है और अकारण डिप्रेशन में सुबह नींद जल्दी टूट जाती है। इसके अतिरिक्त भूख कम हो जाती है तथा वजन घट जाता है। उनकी सभी इच्छायें कम हो जाती हैं और थकान की भावना बनी रहती हैं। चाल भी सुस्त हो जाती है, शरीर के किसी भी भाग में दर्द अथवा कमजोरी महसूस हो सकती है। रोगी कई बार इतना निराश हो जाता है कि वे चिकित्सा नहीं कराना चाहते क्योंकि वह यह समझने लगते हैं कि चिकित्सा में किया गया व्यय भी व्यर्थ होगा। उन्हें अपने ठीक होने की सम्भावना नहीं लगती।
उपरोक्त सभी लक्षण हर रोगी में नहीं पाये जाते हैं। अगर डिप्रेशन हल्का होता है तो लक्षणों की तीव्रता कम होती है और रोगी केवल अपने आप में उदासी महसूस करता है। यदि डिप्रेशन तीव्र होता है तो उपरोक्त लक्षण अधिकतर पाये जाते हैं तथा अत्याधिक डिप्रेशन होने पर रोगी खाना-पीना छोड़ देता है और बुत की तरह हो जाता है और उसी तरह चाल भी धीमी हो जाती है।
डिप्रेशन के रोग वंशानुगत भी हो सकते हैं और स्वतः ठीक भी हो सकते हैं फिर भी मनोचिकित्सक से सलाह लेना ही उचित है।
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